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Friday, April 3, 2015

तेरी यादों से, तेरे ग़म से




तेरी यादों से, तेरे ग़म से वफ़ादारी की
बस यही एक दवा थी मेरी बीमारी की

खुद हवा आई है चलकर, तो चलो बुझ जाएँ
इक तमन्ना ही निकल जायेगी बेचारी की

उम्र भर ज़हन रहा दिल की अमलदारी में
उम्र भर बात न की हमने समझदारी की

फर्क कुछ खास नहीं था मेरे हमदर्दों में
कुछ ने मायूस किया कुछ ने दिल आज़ारी की

गुफ़्तगू अम्न की दोनों में फिर इक बार हुई
और इस बार भी दोनों ने अदाकारी की

कम नहीं जंग से पहले की ये उलझन भी ‘अक़ील’
मेरे दुश्मन को ख़बर है मेरी तैयारी की

~ अक़ील नोमानी
 

  Jun 17, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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