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Friday, April 3, 2015

ऐसी घनी उदासियाँ




ऐसी घनी उदासियाँ बहते जिगर के छाले
किस जुर्म की सजा में दिल दर्द के हवाले।

आदमी होना हँसी मजाक नहीं
और कुछ इससे दर्दनाक नहीं।

अभी अभी उसने बतलाया दर्द कई हैं भारी-भारी
रोटी और पेट का रिश्ता दिल का और नजर का रिश्ता।

सहते सहते गम से यारी हो गयी
सारी दुनिया ही हमारी हो गई।

तेरे मैखाने सरेआम से खाली खाली
सुरूर और ही उस कुदरती शराब का है।

दिल दर्द सुना करता दिल दर्द कहा करता
अहसास का समुन्दर चुपचाप बहा करता।

करिश्मा है सबसे अच्छा
आदमी का खिलखिलाना।

यह बहाना वह बहाना
मौत का भी क्या ठिकाना।

रुक गई थी थोड़ा सुस्ताने अभी
फिर चलेगी दर्द की बारात।

~ ऋषिवंश
 
  Aug 25, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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