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Wednesday, April 1, 2015

फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ



फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं
मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं
*सौदा=मानसिक विकार; जुनूँ=पागलपन; क़रार=चैन

लबो-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला
मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं
*लबो-दहन=होंठ और मुँह; गुफ़्तगू=बात चीत


न जाने क्यों मेरी आखें बरसने लगती हैं
जो सच कहूँ तो कुछ ऐसा उदास हूँ भी नहीं

मेरी जुबाँ की लुकनत से बदगुमाँ न हो
जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं
*लुकनत=हकलाहट; बदगुमाँ=किसी के लिए बुरी धारणा

दुखों के ढेर लगे हैं कि लोग बैठे हैं
इसी दयार का मैं भी हूँ और हूँ भी नहीं
*दयार=स्थान

फ़राज़ जैसे दिया क़ुर्वते-हवा चाहे
वह पास आए तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं
*क़ुर्वते-हवा=हवा का सामीप्य

~ अहमद फ़राज़

  Aug 1, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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