
फिर तेरी तितलीनुमा सूरत मुझे याद आ गई
मुझको वो लम्हा अभी भूला नहीं
एक कोने मे कई लोगों के साथ
गुफ्तगू में मुनहमक खोया हुआ (गुफ्तगू=बातचीत, मुनहमक=तल्लीन)
मेरी आँखों ने कभी तुझ-सा कोई देखा न था
मैं तुझे तकने लगा
देर तक तकता रहा
आँख से, कानों से, होठों से तुझे तकता रहा
क्या अजब दीवानगी थी
रश्क आया बख़्त पे अपनी मुझे (बख़्त=भाग्य)
लफ़्ज़ के असरार मुझपे वा हुये (असरार=भेद, वा हुये=खुल गए)
घंटियाँ-सी मेरे कानों में बजीं
नूर के सैलाब में डूबी हुयी उस शाम की
एक-इक साअत मेरे हमराई है (हमराई=साथ)
रुक गया है वक़्त उस. . इक मोड़ पर
मैं जुदाई के लिए मजबूर था
तू जुदाई पर जहाँ मसरूर था (मसरूर=खुश)
~ शहरयार
Sep 15, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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