हस्ती अपनी, हबाब की-सी है
यह नुमाइश, सराब की-सी है
*हबाब=बुलबुला; सराब=मृग-तृष्णा
नाज़ुकी उसके लब की, क्या कहिए
पंखड़ी इक गुलाब की-सी है
बार बार उसके दर प जाता हूँ
हालत अब इज़्तिराब की-सी है
*इज़्तिराब=बेचैनी
मैं जो बोला, कहा कि यह आवाज़
उसी ख़ान:ख़राब की-सी है
*ख़ान:ख़राब=बर्बाद
मीर, उन नीमबाज़ आँखों में
सारी मस्ती, शराब की-सी है
~ मीर
Nov 9, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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