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Wednesday, April 1, 2015

नाजुकी उसके लब की


हस्ती अपनी, हबाब की-सी है
यह नुमाइश, सराब की-सी है
*हबाब=बुलबुला; सराब=मृग-तृष्णा

नाज़ुकी उसके लब की, क्या कहिए
पंखड़ी इक गुलाब की-सी है

बार बार उसके दर प जाता हूँ
हालत अब इज़्तिराब की-सी है
*इज़्तिराब=बेचैनी

मैं जो बोला, कहा कि यह आवाज़
उसी ख़ान:ख़राब की-सी है
*ख़ान:ख़राब=बर्बाद

मीर, उन नीमबाज़ आँखों में
सारी मस्ती, शराब की-सी है

~ मीर

  Nov 9, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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