
वफ़ा जो मुझ को रास आई नहीं है
तिरी क्या इस में रुसवाई नहीं है
पसारूँ हाथ क्या दाता के आगे
जो माँगी है वो शय पाई नहीं है
मुहब्बत की कोई कीमत नहीं तय
ये शय बाज़ार में आई नहीं है
परत अन्दर परत है याद तेरी
ये पानी पर जमी काई नहीं है
तस्सवुर का लगा है रोग जब से
मिरी तन्हाई तन्हाई नहीं है
शनासाई किसी से क्या करेगा
जिसे ख़ुद से शनासाई नहीं है
शनासाई=जान पहचान
तुझे सूरज की सच्चाई पे शक है
तिरी आँखों में बीनाई नहीं है
बीनाई=दृष्टि क्षमता
जो आकर मौत मुझ से छीन लेगी
हयात ऐसा तो कुछ लाई नहीं है
हयात=life
अभी इतरा लो ऐ काली घटाओ!
अभी वो ज़ुल्फ़ लहराई नहीं है
ज़बां की चोट से तोड़ा है दिल को
अब आसाँ इस की भरपाई नहीं है
मैं क्यूँ “सीमाब” उस को भूल जाऊँ
क़सम ऐसी कोई खाई नहीं है
~ सीमाब सुल्तानपुरी
Nov 8, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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