हस्ती अपनी हबाब की सी है ।
ये नुमाइश सराब की सी है ।।
*हबाब=बुलबुला; सराब=मृग-तृष्णा
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए,
हर एक पंखुड़ी गुलाब की सी है ।
चश्मे-दिल खोल इस भी आलम पर,
याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है ।
बार-बार उस के दर पे जाता हूँ,
हालत अब इज्तेराब की सी है ।
*इज़्तिराब=बेचैनी
मैं जो बोला कहा के ये आवाज़,
उसी ख़ाना ख़राब की सी है ।
*ख़ान:ख़राब=बर्बाद
‘मीर’ उन नीमबाज़ आँखों में,
सारी मस्ती शराब की सी है ।
*नीमबाज=अधखुली
~ मीर तकी 'मीर'
Mar 30, 2011| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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