सबकी सुनना, अपनी करना
प्रेम नगर से जब भी गुज़रना
अनगिन बूँदों में कुछको ही
आता है फूलों पे ठहरना
बरसों याद रखे ये मौजे
दरिया से यूँ पार उतरना
फूलों का अंदाज़ सिमटना
खुशबू का अंदाज़ बिखरना
गिरना भी है बहना भी है
जीवन भी है कैसा झरना
अपनी मंजिल ध्यान में रखकर
दुनिया की राहों से गुज़रना
~ हस्तीमल 'हस्ती'
Jul 3, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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