Disable Copy Text

Friday, April 3, 2015

तोड़ कड़ियाँ ज़मीर की अंजुम




तोड़ कड़ियाँ ज़मीर की अंजुम
और कुछ देर तू भी जी अंजुम

एक भी गाम चल न पायेगी
इन अँधेरों में रौशनी अंजुम

ज़िंदगी तेज़ धूप का दरिया
आदमी नाव मोम की अंजुम

जिस घटा पर थी आँख सहरा की
वो समंदर पे मर गई अंजुम

*क़ुलज़मे-खूं सुखा के दम लेगी
आग होती है आगही अंजुम
*क़ुलज़म-दरिया

जिन पे सूरज की मेहरबानी हो
उन पे खिलती है चाँदनी अंजुम

सुबह का ख़्वाब उम्र भर देखा
और फिर नींद आ गई अंजुम

~ अंजुम लुधियानवी
 

  Jul 4, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment