जी में जो आता है कर गुज़रो कहीं ऐसा न हो
कल पशेमाँ हों कि क्यों दिल का कहा माना नहीं
*शेमाँ=शर्मिंदा / शर्मिन्दा
~ अहमद फ़राज़
Apr 15, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
कल पशेमाँ हों कि क्यों दिल का कहा माना नहीं
*शेमाँ=शर्मिंदा / शर्मिन्दा
~ अहमद फ़राज़
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