
सन्धिनी महादेवी वर्मा की चुनी हुई ६५ कविताओं का संग्रह है, जो १९६४ में प्रकाशित हुआ।
सन्धिनी में जो गीत संग्रहीत, उनके विषय रहस्य-साधना, वेदनानुभूति, प्रकृति और दर्शन और हैं। सन्धिनी में भी उनकी रहस्यानुभूति विशेष वाणी मिली है। इन गीतों में प्रकृति के प्रति अज्ञात परम सत्ता या प्रियतम का आभास, परम प्रिय से मिलन की उत्कंठा और मिलन की अनुभूति की भावना को काव्यात्मक रूप दिया गया है।
पंथ होने दो अपरिचित
प्राण रहने दो अकेला!
और होंगे चरण हारे,
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला!
दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मित,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला!
हास का मधु-दूत भेजो,
रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला!
~ महादेवी वर्मा
Apr 15, 2012| e-kavya.blogspot.comसन्धिनी में जो गीत संग्रहीत, उनके विषय रहस्य-साधना, वेदनानुभूति, प्रकृति और दर्शन और हैं। सन्धिनी में भी उनकी रहस्यानुभूति विशेष वाणी मिली है। इन गीतों में प्रकृति के प्रति अज्ञात परम सत्ता या प्रियतम का आभास, परम प्रिय से मिलन की उत्कंठा और मिलन की अनुभूति की भावना को काव्यात्मक रूप दिया गया है।
पंथ होने दो अपरिचित
प्राण रहने दो अकेला!
और होंगे चरण हारे,
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला!
दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मित,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला!
हास का मधु-दूत भेजो,
रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला!
~ महादेवी वर्मा
Submitted by: Ashok Singh
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