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Sunday, April 5, 2015

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ




कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता

बुझा सका ह भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता

तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो
जहाँ उमीद हो सकी वहाँ नहीं मिलता

कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता

ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता

चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है
खुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता

~ निदा फ़ाज़ली

   May 8, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 


https://www.youtube.com/watch?v=sN1yQ_nMdMc

1 comment:

  1. Jagjeet Singh's melodious voice made this gazal unforgettable;
    ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
    ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता
    popular version is;
    जिसे भी देखिये वो अपने आप मे गुम हैं...
    ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता
    https://www.youtube.com/watch?v=sN1yQ_nMdMc

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