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Friday, April 3, 2015

चलो दिलदार चलो

चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो
हम हैं तैयार चलो

आओ खो जाएं सितारों में कहीं
छोड़ दें आज ये दुनिया ये ज़मीं,

हम नशे में हैं सम्भालो हमें तुम
नींद आती है जगा लो हमें तुम

ज़िंदगी खत्म भी हो जाये अगर
न कभी खत्म हो उल्फ़त का सफ़र

~ कैफ़ भोपाली
 
  Jul 12, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

1 comment:

  1. Re-Mix in poetry...?

    चलो दिलदार चलो
    चाँद के पार चलो !

    तुम्हारी चमकती आँखों में छांककर पूछती--
    और तुम अपनी मदमस्त आँखों को घुमाकर कहते --
    "हम हैं तैयार चलो "--
    और मैं ख़ुशी के हिंडोले में सवार
    दू.....र... आकाश में अपने पंख पसार
    बादलो से परे,
    चाँद की पथरीली जमीं पर,
    उड़ते -उड़ते घायल हो चुकी हूँ ,
    अपने लहू -लुहान जिस्म को समेटे ,
    कातर निगाहों से तुम्हे धूर रही हूँ ,
    और तुम दू....र खड़े मुसकुराते हुए,
    मानो,मेरा मजाक उड़ा रहे हो---


    " चाँद को छूने वाले ओंधे मुंह जो गिरते है "

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