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Friday, April 3, 2015

इस तरह तो दर्द घट सकता नहीं



इस तरह तो दर्द घट सकता नहीं
इस तरह तो वक़्त कट सकता नहीं
आस्तीनों से न आँसू पोछिए
और ही तदबीर कोई सोचिए।
* तदबीर=युक्ति, उपाय

यह अकेलापन, अँधेरा, यह उदासी, यह घुटन
द्वार तो हैं बंद भीतर किस तरह झाँके किरण।

बंद दरवाज़े ज़रा-से खोलिए
रौशनी के साथ हँसिये-बोलिए
मौन पीले पत्ते सा झर जाएगा
तो ह्रदय का घाव ख़ुद भर जाएगा।

एक सीढ़ी है ह्रदय में भी, महज घर में नहीं
सर्जना के दूत आते हैं सभी होकर वहीं।
*सर्जना=सृजन

ये अहम की श्रृंखलाएं तोड़िए
और कुछ नाता गली से जोड़िए
जब सडक का शोर भीतर आएगा
तब अकेलापन स्वयं मर जाएगा।

आईए, कुछ रोज़ कोलाहल भरा जीवन जिएँ
अंजुरी भर दूसरों के दर्द का अमृत पिएँ।

आईए, बातून अफ़वाहें सुनें
फ़िर अनागत के नए सपने बुनें
यह सिलेटी कोहरा छँट जाएगा
तो ह्रदय का दुःख दर्द ख़ुद घट जाएगा।
*अनागत=अजन्मा

~ बालस्वरूप राही

  Apr 3, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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