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Friday, April 3, 2015

एक खलिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवां




एक खलिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवां रहने दिया
जान कर हमनें उन्हें ना मेहरबां रहने दिया
*खलिश=दर्द; रवां=लगातार; हासिल=मिलना/निष्कर्ष

कितनी दीवारों के साए हाथ फैलाते रहे
इश्क नें लेकिन हमें बेखानुमा रहने दिया
*बेखानुमा=प्यार से वंचित

अपने अपने हौसले अपनी तलब की बात ही
चुन लिया हमने उन्हें सारा जहाँ रहने दिया

यह भी क्या जीने में जीना है बैगैर उनके अदीब,
शम्मा गुल कर दी गयी बाकी धुआं रहने दिया

~ अदीब 'सहारनपुरी'


  Aug 31, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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