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Sunday, April 5, 2015

मस्जिद लिए फिरो के शिवाले



मस्जिद लिए फिरो के शिवाले लिए फिरो
सीनों में दिल हुज़ूर न काले लिए फिरो


है लाख तीरगी का तसल्लुत मगर नवाज़
तुम शहर में ग़ज़ल के उजाले लिए फिरो

हर इक नज़र से नज़र को बचा के देखा है
नज़र तो हमने तमाशा बनाके देखा है

ज़मामा खुश है के हम दीद से रहे मेहरों
किस्सी ने शौख से चिलमन गिराके देखा है

जहान को देखा तसव्वुर में रूह कर जिस के
उसी के सिम्त जहान को भुला के देखा है


~  नवाज़ देवबन्दी

   Apr 1, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

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