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Friday, April 3, 2015

चाह नहीं मैं सुरबाला के



चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनो में गूथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊं चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊं
चाह नहीं देवों के सर पर चढूं
भाग्य पर इतराऊँ

मुझे तोड़ लेना बन -माली ,
उस पथ पर देना तुम फ़ेंक
मात्र -भूमि पर शीश चढाने ,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक .


 ~  माखनलाल चतुर्वेदी
 
  Aug 3, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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