चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनो में गूथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊं चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊं
चाह नहीं देवों के सर पर चढूं
भाग्य पर इतराऊँ
मुझे तोड़ लेना बन -माली ,
उस पथ पर देना तुम फ़ेंक
मात्र -भूमि पर शीश चढाने ,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक .
~ माखनलाल चतुर्वेदी
Aug 3, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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