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Thursday, April 2, 2015

अगरचे देखने में सो रहा था


अगरचे देखने में सो रहा था
मगर अंदर से मै जागा हुआ था

कहा तक हम उसे जाते बुलाने
वो काफी देर पहले जा चूका था

अब आया है तो आने दो, न रोको
हमारे पास से उठकर गया था

वही जागी हुई बेनूर आँखे
वही ख्वाबो का लंबा सिलसिला था

नदी हर शाम को जाती थी लेकिन
समुन्दर था कि शब् भर जागता था

परिंदे बारी-बारी उड़ रहे थे
मगर इक मुस्तकिल बैठा हुआ था

वही बाते है लेकिन हस रहा हू
जिन्हें सुनकर मै एक दिन रो पड़ा था

~ शमीम फ़ारुक़ी

 
  Oct 14, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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