अगरचे देखने में सो रहा था
मगर अंदर से मै जागा हुआ था
कहा तक हम उसे जाते बुलाने
वो काफी देर पहले जा चूका था
अब आया है तो आने दो, न रोको
हमारे पास से उठकर गया था
वही जागी हुई बेनूर आँखे
वही ख्वाबो का लंबा सिलसिला था
नदी हर शाम को जाती थी लेकिन
समुन्दर था कि शब् भर जागता था
परिंदे बारी-बारी उड़ रहे थे
मगर इक मुस्तकिल बैठा हुआ था
वही बाते है लेकिन हस रहा हू
जिन्हें सुनकर मै एक दिन रो पड़ा था
~ शमीम फ़ारुक़ी
Oct 14, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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