
कैसे कैसे हादसे सहते रहे,
हम यूँ ही जीते रहे हँसते रहे
उसके आ जाने की उम्मीदें लिए
रास्ता मुड़ मुड़ के हम तकते रहे
वक्त तो गुजरा मगर कुछ इस तरह
हम चरागों की तरह जलते रहे
कितने चेहरे थे हमारे आस-पास
तुम ही तुम दिल में मगर बसते रहे
~ वाजिदा तबस्सुम
Aug 28, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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