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Friday, April 3, 2015

पहली मोहब्बतों के ज़माने



पहली मोहब्बतों के ज़माने गुज़र गए
साहिल पे रेत छोड़ के दरिया उतर गए

तेरी अना नियाज़ की किरनें बुझा गई
जज़्बे जो दिल में उभरे थे शर्मिंदा कर गए

दिल की फ़ज़ाएँ आ के कभी ख़ुद भी देख लो
तुम ने जो दाग़ बख़्शे थे क्या क्या निखर गए

तेरे बदन की लौ में करिश्मा नुमू का था
ग़ुंचे जो तेरी सेज पे जागे सँवर गए

सदियों में चाँद फूल खिले और समर बने
लम्हों में आँधियों के थपेड़ों से मर गए

शब भर बदन मनाते रहे जश्न-ए-माहताब
आई सहर तो जेसे अँधेरों से भर गए

महफ़िल में तेरी आए थे लेकर नज़र की प्यास
महफ़िल से तेरी ले मगर चश्म-ए-तर गए

क़तरे की जुरअतों ने सदफ़ से लिया ख़राज
दरिया समंदरों से मिले और मर गए

~ ख़ातिर ग़ज़नवी

 
  Aug 6, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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