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Sunday, April 5, 2015

है बात वक़्त वक़्त की

है बात वक़्त वक़्त की चलने की शर्त है
साया कभी तो कद के बराबर भी आएगा

ऐसी तो कोई बात तसव्वुर में भी न थी
कोई ख़्याल आपसे हट कर भी आएगा

मैं अपनी धुन में आग लगाता चला गया
सोचा न था कि ज़द में मेरा घर भी आएगा

~ गणेश बिहारी 'तर्ज़'


   Apr 19, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

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