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Friday, April 3, 2015

सुंदर कोमल सपनों की बारात



सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
धूप आँखों तक आ पहुँची है रात गुज़र गई जानाँ

भोर समय तक जिसने हमें बहम उलझाये रखा
वो अलबेली रेशम जैसी बात गुज़र गई जानाँ

सदा की देखी रात हमें इस बार मिली तो चुप के से
ख़ाली हाथ पे रख के क्या सौग़ात गुज़र गई जानाँ

किस कोंपल की आस में अब तक वैसे ही सर-सब्ज़ हो तुम
अब तो धूप का मौसम है बरसात गुज़र गई जानाँ

लोग न जाने किन रातों की मुराद माँगा करते हैं
अपनी रात तो वो जो तेरे साथ गुज़र गई जानाँ

~ परवीन शाकिर


  Jun 2, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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