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Friday, April 3, 2015

हवा से उलझे कभी ...




हवा से उलझे कभी सायों से लड़े हैं लोग
बहुत अज़ीम हैं यारों बहुत बड़े हैं लोग

इसी तरह से बुझे जिस्म जल उठें शायद
सुलगती रेत पे ये सोच कर पड़े हैं लोग

सुना है अगले ज़माने में संगो-आहन थे
हमारे अहद में तो मिटटी के घड़े हैं लोग

संगो-आहन = पत्थर और लोहा (मज़बूत)

~ शहरयार


  Jun 20, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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