
मुझे गर इश्क़ का अरमान होता,
तो घर मे 'मीर' का दीवान होता।
किसी तकरीब का सामान होता,
की हमसाया मेरा सामान होता।
न होते फ़ासलों के शहर मे हम,
तो फिर मिलना बहुत आसान होता।
अगर सब लोग होते मुझसे छोटे,
तो मैं सबसे बड़ा इंसान होता।
जिसे दिल में छिपाए फिर रहे,
अगर लब पर वही तूफान होता।
तेरी महफिल मे आकर सोचता कि,
न आता, तो बहुत नुकसान होता।
जो मैं सच्ची गजल लिखता, तो 'सरशार',
वही हर शेर का उन्वान होता।
*उन्वान = शीर्षक
~ सरशार सिद्दीकी
Oct 29, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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