Disable Copy Text

Wednesday, April 1, 2015

चलो कि मंज़िल दूर नहीं




चलो कि मंज़िल दूर नहीं चलो कि मंज़िल दूर नहीं
आगे बढ़कर पीछे हटना वीरों का दस्तूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं ...

चिड़ियों की चूँ-चूँ को देखो जीवन संगीत सुनाती
कलकल करती नदिया धारा चलने का अंदाज़ बताती
ज़िस्म तरोताज़ा हैं अपने कोई थकन से चूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं ..

बनते-बनते बात बनेगी बूँद-बूँद सागर होगा
रोटी कपड़ा सब पाएँगे सबका सुंदर घर होगा
आशाओं का ज़ख़्मी चेहरा इतना भी बेनूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं....

पथरीली राहें हैं साथी संभल-संभल चलना होगा
काली रात ढलेगी एक दिन सूरज को उगना होगा
राहें कहती हैं राही से आ जा मंज़िल दूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं .. चलो कि मंज़िल दूर नहीं

~ बल्ली सिंह चीमा


  Nov 5, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment