
ख़ुश्बू है वो तो छू के बदन को गुज़र न जाये
जब तक मेरे वजूद के अन्दर उतर न जाये
ख़ुद फूल ने भी होंठ किये अपने नीम-वा
चोरी तमाम रंग की तितली के सर न जाये
इस ख़ौफ़ से वो साथ निभाने के हक़ में है
खोकर मुझे ये लड़की कहीं दुख से मर न जाये
पल्कों को उस की अपने दुपट्टे से पोँच दूँ
कल के सफ़र में आज की गर्द-ए-सफ़र न जाये
मैं किस के हाथ भेजूँ उसे आज की दुआ
क़ासिद हवा सितारा कोई उस के घर न जाये
~ परवीन शाकिर
Sep 8, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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