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Friday, April 3, 2015

अपना अंजाम तो मालूम है



आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
जख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ  है

जब हक़ीक़त है कि हर ज़र्रे में तू रहता है
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ  है

अपना अंजाम तो मालूम है सबको फिर भी
अपनी नज़रों में हर इंसान सिकंदर क्यूँ है

ज़िंदगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब 'फ़ाकिर'
वरना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है

~ सुदर्शन फ़ाकिर

  Jun 11, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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