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Friday, April 3, 2015

फूल थे, बादल भी था




फूल थे, बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी
दिल में लेकिन और ही एक शक्ल की हसरत भी थी।

जो हवा में घर बनाए काश कोई देखता
दाश्त में रहते थे पर तामीर की आदत भी थी।

कह गया मैं सामने उसके जो दिल का मुद्दआ
कुछ तो मौसम भी अजब था कुछ मेरी हिम्मत भी थी।

अजनबी शहरों में रहते उम्र सारी कट गई
गो ज़रा से फ़ासले पर घर की हर राहत भी थी।

क्या कयामत है मुनीर अब याद भी आते नहीं
वो पुराने आशना जिनसे हमें उलफ़त भी थी।

~ मुनीर नियाज़ी
 

  Jun 12, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

1 comment:

  1. Vidhi Gupta, फूलो की खुशबू से भी ज्यादा खूबसूरत महक होती है जिसको आदमी पूरी जिन्दगी महसूस करना चाहता है
    फर्क सिर्फ अहसासों का है. अब तुम पूछोगी की किसकी खुशबू
    तो जवाब है
    कोरे मटके में पहली बार पानी की खुशबू
    पहली बारिश में मिटटी की खुशबू

    - युगल गुप्ता

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