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Friday, April 3, 2015

आरज़ूएं हज़ार रखते हैं



आरज़ूएं हज़ार रखते हैं
तो भी हम दिल को मार रखते हैं

बर्क़ कम हौसला है हम भी तो
दिल एक बेक़रार रखते हैं

ग़ैर है मूराद-ए-इनायत हाए
हम भी तो तुम से प्यार रखते हैं
*इनायत=आस्था

न निगाह न पयाम न वादा
नाम को हम भी यार रखते हैं
*पयाम=संदेश

हम से ख़ुश ज़म-ज़मा कहाँ यूँ तो
लब-ओ-लहजा हज़ार रखते हैं
*ज़मज़मा=नग़मा,  राग

छोटे दिल के हैं बुताँ मशहूर
बस यही ऐतबार रखते हैं

फिर भी करते हैं "मीर" साहिब इश्क़
हैं जवाँ इख़्तियार रखते हैं
*इख़्तियार=परवाना

~ मीर तक़ी 'मीर'


  Jul 27, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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