Disable Copy Text

Friday, April 3, 2015

गली-गली तेरी याद बिछी है



 
गली-गली तेरी याद बिछी है, प्यारी रस्ता देख के चल
मुझसे इतनी वहशत है तो मेरी हदों से से दूर निकल।

एक समय तेरा फूल-सा नाज़ुक हाथ था मेरे शानों पर
एक ये वक़्त कि मैं तनहा और दुख के काँटों का जंगल।

याद है अब तक तुझसे बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे
तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल।

मेरा मुँह क्या देख रहा है, देख उस काली रात तो देख
मैं वही तेरा हमराही हूँ, साथ मेरे चलना है तो चल।
 
 ~ नासिर काज़मी

  Jun 7, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment