
फ़ैज़ साहब की कुछ रचनाएँ बच्चन जी से प्रेरित लगती हैं,
तुम्हीं कहो क्या करना है
जब दुःख की नदिया में हमने
जीवन की नाव डाली थी
था कितना कस-बल बाहों में
लोहू में कितनी लाली थी
यूँ लगता था दो हाथ लगे
और नाव पूरम्पार लगी
ऐसा ना हुआ, हर धारे में
कुछ अनदेखी मझधारें थीं
कुछ माँझी थे अनजान बहुत
कुछ बेपरखी पतवारें थीं
अब जो भी चाहो छान करो
अब जितना चाहो दोष धरो
नदिया तो वही है नाव वही
अब तुम ही कहो क्या करना है
अब कैसे पार उतरना है
तुम्हीं कहो क्या करना है
जब दुःख की नदिया में हमने
जीवन की नाव डाली थी
था कितना कस-बल बाहों में
लोहू में कितनी लाली थी
यूँ लगता था दो हाथ लगे
और नाव पूरम्पार लगी
ऐसा ना हुआ, हर धारे में
कुछ अनदेखी मझधारें थीं
कुछ माँझी थे अनजान बहुत
कुछ बेपरखी पतवारें थीं
अब जो भी चाहो छान करो
अब जितना चाहो दोष धरो
नदिया तो वही है नाव वही
अब तुम ही कहो क्या करना है
अब कैसे पार उतरना है
~ फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
May 29, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment