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Monday, April 6, 2015

आओ फिर नज़्म कहें




कितना अरसा हुआ कोई उम्मीद जलाये

आओ फिर नज़्म कहें,
फिर किसी दर्द को सहला के सुजा लें आँखें
फिर किसी दुखती हुई रग से छुआ दें नश्तर
या किसी भूली हुई राह पे मुड़ कर एक बार
नाम ले कर किसी हमनाम को आवाज़ ही दें लें
.....फिर कोई नज़्म कहें |

~ गुलज़ार, ('यार जुलाहे' )


  Feb 22, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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