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Monday, April 6, 2015

आ कि अब मृतप्राय-से



आ कि अब मृतप्राय-से-इतिहास को जिन्दा करें
आदमियत के दबे, एहसास को जिन्दा करें

सांस है तो आस है - कहते चले आए बुजुर्ग
चल, कि जीने, के लिए अब आस को जिन्दा करें

रेत में प्यासे हिरन को जिंदा रखता है सराब
वास्तविक चाहे न हो, आभास को जिन्दा करें

ऐसे मौसम में, जहाँ सच बोलना दुश्वार हो
मौन रहने के कठिन अभ्यास को जिन्दा करें

~ योगेन्द्र दत्त शर्मा


  Feb 13, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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