
आ कि अब मृतप्राय-से-इतिहास को जिन्दा करें
आदमियत के दबे, एहसास को जिन्दा करें
सांस है तो आस है - कहते चले आए बुजुर्ग
चल, कि जीने, के लिए अब आस को जिन्दा करें
रेत में प्यासे हिरन को जिंदा रखता है सराब
वास्तविक चाहे न हो, आभास को जिन्दा करें
ऐसे मौसम में, जहाँ सच बोलना दुश्वार हो
मौन रहने के कठिन अभ्यास को जिन्दा करें
~ योगेन्द्र दत्त शर्मा
Feb 13, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment