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Wednesday, April 1, 2015

फिर वही माँगे हुए लम्हे



फिर वही माँगे हुए लम्हे, फिर वही जाम-ए-शराब
फिर वही तारीक रातों में ख़याल-ए-माहताब

माहताब=चाँद

फिर वही तारों की पेशानी पे रंग-ए-लाज़वाल
फिर वही भूली हुई बातों का धुंधला सा ख़याल

पेशानी=माथा, लाज़वाल=अमर

फिर वो आँखें भीगी भीगी दामन-ए-शब में उदास
फिर वो उम्मीदों के मदफ़न ज़िन्दगी के आस-पास

दामन-ए-शब= रात के आगोश में, मदफ़न=जमीन में गाड़ा हुआ

फिर वही फ़र्दा की बातें फिर वही मीठे सराब
फिर वही बेदार आँखें फिर वही बेदार ख़्वाब

फ़र्दा=भविष्य, सराव=भ्रम, बेदार=निद्राविहीन

फिर वही वारफ़्तगी तनहाई अफ़सानों का खेल
फिर वही रुख़्सार वो आग़ोश वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह
फिर वही शहर-ए-तमन्ना फिर वही तारीक राह

वारफ़्तगी=ख़ुद अपने आप में खोया हुआ, रुख़्सार=गाल, तारीक=काला, अँधेरा,


ज़िन्दगी की बेबसी उफ़्फ़ वक़्त के तारीक जाल
दर्द भी छिनने लगा उम्मीद भी छिनने लगी
मुझ से मेरी आरज़ू-ए-दीद भी छिनने लगी
फिर वही तारीक माज़ी फिर वही बेकैफ़ हाल

बेकैफ़=उमंगहीन, जीवनहीन, माज़ी=गुजरा हुआ

फिर वही बेसोज़ लम्हें फिर वही जाम-ए-शराब
फिर वही तारीक रातों में ख़याल-ए-माहताब

बेसोज़=बेजान

~
अली सरदार जाफ़री

  Dec 2, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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