Disable Copy Text

Monday, April 6, 2015

कहत, नटत, रीझत, खिजत

कहत, नटत, रीझत, खिजत, मिलत, खिलत, लजिआत.
भरे भवन में करत हैं, नैनों से ही बात ।।

नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यहि काल।
अली कली में ही बिन्ध्यो, आगे कौन हवाल।।

अमी, हलाहल, मद भरे, स्वेत, श्याम, रतनार
जियत, मरत, झुकि-झुकि परत, जिहि चितवत इक बार

कनक छड़ी सी कामिनी, कटि काहे को क्षीण,
कटि को कंचन काटी विधि, कुचन मध्य धर दीन्हिं।

~ बिहारी के दोहे

  Nov 11, 2010| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment