
देवानन्द जी की याद मे फ़ैज़ साहब का एक शेर;
तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी तेरे जाँ-निसार चले गये
तेरी राह में करते थे सर तलब सर-ए-राह-गुज़ार चले गये
न रहा जुनूँ-ए-रुख़-ए-वफ़ा ये रसन ये दार करोगे क्या
जिन्हेँ जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था वो गुनाहगार चले गये
~ फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी तेरे जाँ-निसार चले गये
तेरी राह में करते थे सर तलब सर-ए-राह-गुज़ार चले गये
न रहा जुनूँ-ए-रुख़-ए-वफ़ा ये रसन ये दार करोगे क्या
जिन्हेँ जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था वो गुनाहगार चले गये
~ फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
Submitted by: Ashok Singh
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