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Friday, April 3, 2015

जब सुख के मोती हों आंगन में



जब सुख के मोती हों आंगन में बिखरे
तो मुहब्बत का पुराना गीत याद आता है
एक गोरैया आती है सूखे नलके की टोंटी पर दो पल के लिए
जामुन की दोपहर याद आती है
कमरे में हो दिल्ली की धूप
उखड़ी लिखावट में वो ख़त याद आता है
दो पंक्तियों के बीच छिपा शब्द संकेत
आना पुरानी नदी के किनारे
जब गोधूलि की गंध लिये पूरा गांव लौट रहा हो गांव की ओर

सबका प्रेम सबकी कहानी
कह चुके कलमनवीस
मेरी कहानी अब भी बची है
लैला और सोहणी खुद को जितना जानती थीं
उससे भी अधिक जानते थे उन्हें गुरबख्‍श सिंह

कागा सब तन खाइयो चुन चुन खाइयो मास
दो नैना मत खाइयो मोहे पिया मिलन की आस

सब कुछ कहने के बाद भी बचता है अनकहा

वो रोशनी प्यार की उंगलियों में अंगूठी की तरह पहने हुए
रहस्य की पगडंडी पर चलते थे
उम्र के साथ फिसल गयी
सूखी घासों में हम अब भी ढूंढते हैं अपना बचपन
हरा तोता
श्‍वेत बकुल
पीली तितली
और आसमानी आंखोंवाली वो लड़की

सुख में ही होती है फुर्सत
कि आप सुबह टहल सकें
दोपहर में सो सकें
और शाम की मुंडेर पर खड़े होकर कटती हुई पतंगों को देख सकें

सभी औरतें क्यों लगती हैं बचपन की सखियों-सी?
एक सफल दांपत्य क्यों होता है रिक्त स्थानों से भरा?

शास्त्र रचने वाले पंडित हमारी बेचैनियों का दंड तय करें

उन यादों से खदेड़ने की तरक़ीबें बता दें
जो हमारी हार पर हंसती हैं

बचपन का प्रेम सबने हारा

तेल में चुपड़ी दो चोटियों से झूलता हुआ लाल रिबन
हमारी ज़िन्दगी से ऐसे निकल गया
जैसे जाती हुई बहार चली जाती है
चुपचाप

बरसों बीत जाने के बाद
रेल के किसी सफर में
मातृत्व की करुणा में लिपटी हुई स्त्री का एक ही संबोधन होता है
‘भाई साहब’

वही तो है जिसके जूड़े में हरसिंगार के फूल सजाता
वही तो है जिसकी रातें अमावस के अंधेरे से चुरा कर
चांदनी के महकते बगीचे में ले जाता
वही तो है जिसका सुख ही मेरा पसंदीदा गीत था

पुराना सुख लौट कर नहीं आता
दुख के झकोरों-सी आती हैं उसकी यादें
सुखी जीवन पर दस्तक देती है पुरानी मोहब्बत
मैं अपना दांपत्य बचाना चाहता हूं

शास्त्र रचने वाले पंडित
हमें उन यादों से खदेड़ने की तरक़ीबें बता दें!

~ अविनाश


  Aug 30, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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