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Friday, April 3, 2015

बाँध दिए नज़रों से



बाँध दिए नज़रों से
फूल हरसिंगार के
तुमने कुछ बोल दिया
चर्चे हैं प्यार के

मौसम का रंग-रूप
और अधिक निखरा है
सैलानी मन मेरा आसपास बिखरा है
आज मिला कोई बिन चिट्ठी,
बिन तार के

उतरे हैं पंछी ये
झुकी हुई डाल से
रिझा गया कोई फिर नैन, नक्श, चाल से
टीले मुस्तैद खड़े जुल्फ़ को
संवार के

बलखातीनदियों के
संग आज बहना है
अनकहा रहा जो कुछ आज वही कहना है
अब तक हम दर्शक थे नदी के
कगार के

~ जयकृष्ण राय तुषार


  Sep 5, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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