
दुखाए दिल जो किसी का वो आदमी क्या है,
किसी के काम न आए तो ज़िंदगी क्या है।
किसी को तुझ से गिला तेरी बेरूखी का न हो,
जो हो चुका है तेरा तू अगर उसी का न हो,
फिर उसके वास्ते ये क़ायनात भी क्या है,
किसी के काम न आए तो ज़िंदगी क्या है।
किसी के दिल की तू फरियाद है क़रार नहीं,
खिलाए फूल जो ज़ख्मों के वो बहार नहीं,
जो दूसरों के लिए ग़म हो वो खुशी क्या है,
किसी के काम न आए तो ज़िंदगी क्या है।
ये क्या कि आग किसी की हो और कोई जले,
बने शरीक-ए-सफ़र जिसका उससे बचके चले,
जो फ़ासले न मिटा दे वो प्यार हीं क्या है,
किसी के काम न आए तो ज़िंदगी क्या है।
~ मुज़फ़्फ़र वारसी
किसी के काम न आए तो ज़िंदगी क्या है।
किसी को तुझ से गिला तेरी बेरूखी का न हो,
जो हो चुका है तेरा तू अगर उसी का न हो,
फिर उसके वास्ते ये क़ायनात भी क्या है,
किसी के काम न आए तो ज़िंदगी क्या है।
किसी के दिल की तू फरियाद है क़रार नहीं,
खिलाए फूल जो ज़ख्मों के वो बहार नहीं,
जो दूसरों के लिए ग़म हो वो खुशी क्या है,
किसी के काम न आए तो ज़िंदगी क्या है।
ये क्या कि आग किसी की हो और कोई जले,
बने शरीक-ए-सफ़र जिसका उससे बचके चले,
जो फ़ासले न मिटा दे वो प्यार हीं क्या है,
किसी के काम न आए तो ज़िंदगी क्या है।
~ मुज़फ़्फ़र वारसी
Sep 4, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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