
रौशनी छीन के घर-घर से चरागों कि अगर,
चाँद बस्ती में उगा हो, मुझे मंजूर नहीं
हूँ मैं कुछ आज अगर तो हूँ बदौलत उसकी
मेरे दुश्मन का बुरा हो, मुझे मंजूर नहीं
हो चरागां तेरे घर में, मुझे मंजूर 'सलिल'
गुल कहीं और दिया हो, मुझे मंजूर नहीं
~ कुलदीप सलिल
Nov 16, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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