
मैं दुखी जब-जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा
रीती दोनों ने निभाई
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु धरा?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी
कौन है जो दूसरों को
दुःख अपना दे सकेगा?
कौन है जो दुसरे से
दुःख उसका ले सकेगा?
क्यों हमारे बीच धोखे
का रहे व्यापर जारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्यों न हम लें मान, हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर
हर पथिक जिस पर अकेला
दुःख नहीं बँटते परस्पर
दूसरों की वेदना में
वेदना है जो दिखाता
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल वह छिपाता
तुम दुखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी!
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
~ हरिवंशराय बच्चन
May 4, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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