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Sunday, April 5, 2015

कभी यूँ मिलें कोई मसलेहत

 

कभी यूँ मिलें कोई मसलेहत, कोई खौफ दिल में ज़रा न हो
मुझे अपनी कोई ख़बर न हो, तुझे अपना कोई पता न हो ।

वो फिराक हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग़ बन के जला न हो ।
*फिराक = वियोग, विछोह; विसाल = सयोग, मिलाप

कभी धूप दे, कभी बदलियाँ, दिलो-जाँ से दोनों क़ुबूल हैं
मगर उस नगर में न क़ैद कर, जहाँ ज़िन्दगी की हवा न हो ।

वो हज़ारों बाग़ों का बाग़ हो, तेरी बरकतों की बहार से
जहाँ कोई शाख हरी न हो, जहाँ कोई फूल खिला न हो ।

तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज़ दे
यूँ दुआयें मेरी क़ुबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ न हो ।

कभी हम भी जिस के क़रीब थे, दिलो-जाँ से बढ़कर अज़ीज़ थे
मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला न हो ।

~ बशीर बद्र

 
   Apr 6, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

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