Disable Copy Text

Sunday, April 5, 2015

हुस्न को बेहिजाब होना था



हुस्न को बेहिजाब होना था
शौक़ को कामयाब होना था

हिज्र में कैफ़-ए-इज़्तिराब न पूछो
ख़ून-ए-दिल भी शराब होना था।

तेरे जलवों में घिर गया आख़िर
ज़र्रे को आफ़ताब होना था।

कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था।

~ मजाज़ ‘लखनवी'


   Apr 5, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

No comments:

Post a Comment