
हुस्न को बेहिजाब होना था
शौक़ को कामयाब होना था
हिज्र में कैफ़-ए-इज़्तिराब न पूछो
ख़ून-ए-दिल भी शराब होना था।
तेरे जलवों में घिर गया आख़िर
ज़र्रे को आफ़ताब होना था।
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था।
~ मजाज़ ‘लखनवी'
Apr 5, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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