ये तेरे प्यार की ख़ुश्बू से महकती हुई रात
अपने सीने में छुपाये तेरे दिल की धड़कन
आज फिर तेरी अदा से मेरे पास आई है
अपनी आँखों में तेरी ज़ुल्फ़ का डाले काजल
अपनी पलकों में सजाये हुए अरमानो के ख्वाब
अपने आँचल पे तमन्ना के सितारे टाँके
गुनगुनाती हुई यादों की लवें जाग उठी
कितने गुज़रे हुए लम्हों के चमकते जुगनू
दिल को हाले में लिए नाच रहे हैं कब से
कितने लम्हे जो तेरी ज़ुल्फ़ के साये के तले
ग़र्क़ होकर तेरी आँखों के हसीं सागर में
ग़म-ऐ-दौराँ से बहुत दूर गुज़ारे मैंने
कितने लम्हे की तेरी प्यार भरी नज़रों ने
किस सलीक़े से सजाई मेरे दिल की महफ़िल
किस क़रीने से सिखाया मुझे जीने का शऊर
कितने लम्हे की हसीं नर्म सुबक आँचल से
तुने बढ़कर मेरे माथे का पसीना पोंछा
चांदनी बन गयी राहों की कड़ी धुप मुझे
कितने लम्हे की ग़म-ऐ-ज़ीस्त के तूफानों में
जिंदगानी की जलाये हुए बाग़ी मशाल
तू मेरा अजम-ऐ-जवाँ बनकर मेरे साथ रही
कितने लम्हे की ग़म-ऐ-दिल से उभर कर हमने
इक नयी सुबह-ऐ-मुहब्बत की लगन अपनाई
सारी दुनिया के लिए, सारे ज़माने के लिए
इन्ही लम्हों के गुल-आवेज़ शरारों का तुझे
गूंधकर आज कोई हार पहना दूं, आ आ
चूमकर मांग तेरी तुझको सजा दूं, आ आ
~ जाँ निसार अख़्तर
Mar 8, 2011| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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