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Tuesday, April 7, 2015

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर


Sahir Ludhianvi

कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया ।
बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया ॥

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को ।
क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया ?

किस लिए जीते हैं हम, किसके लिए जीते हैं ?
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया ॥

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर, ऐ दोस्त !
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया ॥

~ साहिर लुधियानवी

  Mar 6, 2011| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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