Disable Copy Text

Monday, April 6, 2015

कोई इक तिशनगी कोई समुन्दर

कोई इक तिशनगी कोई समुन्दर लेके आया है
जहाँ मे हर कोई अपना मुकद्दर लेके आया है

तबस्सुम उसके होठों पर है उसके हाथ में गुल है
मगर मालूम है मुझको वो ख़ंजर लेके आया है

तेरी महफ़िल से दिल कुछ और तनहा होके लौटा है
ये लेने क्या गया था और क्या घर लेके आया है

न मंज़िल है न मंज़िल की है कोई दूर तक उम्मीद
ये किस रस्ते पे मुझको मेरा रहबर लेके आया है

~ राजेश रेड्डी


  Jan 25, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment