
ज़िन्दगी का ये सफ़र भी यूँ ही पूरा हो गया
इक ज़रा नज़रें उठायीं थीं कि पर्दा हो गया
दर्द जब उमड़ा तो इक आंसू का कतरा हो गया
और जब ठहरा तो बढ़ कर एक दरिया हो गया
अपनों को अपना ही समझा ग़ैर समझा ग़ैर को
गौर से देखा तो देखा मुझको धोका हो गया
अव्वल अव्वल तो समाधी में अँधेरा ही रहा
आखिर आखिर हर तरफ जैसे उजाला हो गया.
~ गणेश बिहारी 'तर्ज़'
इक ज़रा नज़रें उठायीं थीं कि पर्दा हो गया
दर्द जब उमड़ा तो इक आंसू का कतरा हो गया
और जब ठहरा तो बढ़ कर एक दरिया हो गया
अपनों को अपना ही समझा ग़ैर समझा ग़ैर को
गौर से देखा तो देखा मुझको धोका हो गया
अव्वल अव्वल तो समाधी में अँधेरा ही रहा
आखिर आखिर हर तरफ जैसे उजाला हो गया.
~ गणेश बिहारी 'तर्ज़'
May 31, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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