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Saturday, April 4, 2015

ज़िन्दगी का ये सफ़र भी




ज़िन्दगी का ये सफ़र भी यूँ ही पूरा हो गया
इक ज़रा नज़रें उठायीं थीं कि पर्दा हो गया

दर्द जब उमड़ा तो इक आंसू का कतरा हो गया
और जब ठहरा तो बढ़ कर एक दरिया हो गया

अपनों को अपना ही समझा ग़ैर समझा ग़ैर को
गौर से देखा तो देखा मुझको धोका हो गया

अव्वल अव्वल तो समाधी में अँधेरा ही रहा
आखिर आखिर हर तरफ जैसे उजाला हो गया.

~ गणेश बिहारी 'तर्ज़'


  May 31, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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