बस सफ़र, पैहम सफ़र, दायम, मुसलसल, बे क़याम
चलते रहिये, चलते रहिये, फासला मत पूछिए
*पैहम: निरंतर, दायम: हमेशा, मुसलसल: लगातार, बे-क़याम: बिना रुके
ज़िन्दगी का रूप यकसां, तजरुबे सबके अलग
इस समर का भूल कर भी जायका मत पूछिए
*यकसां: एक जैसा, समर: फल
क्या खबर है कौन किस अंदाज़, किस आलम में हो
दोस्तों से उनके मस्कन का पता मत पूछिए
*मस्कन: घर
~ निश्तर ख़ानक़ाही
Jan 28, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
चलते रहिये, चलते रहिये, फासला मत पूछिए
*पैहम: निरंतर, दायम: हमेशा, मुसलसल: लगातार, बे-क़याम: बिना रुके
ज़िन्दगी का रूप यकसां, तजरुबे सबके अलग
इस समर का भूल कर भी जायका मत पूछिए
*यकसां: एक जैसा, समर: फल
क्या खबर है कौन किस अंदाज़, किस आलम में हो
दोस्तों से उनके मस्कन का पता मत पूछिए
*मस्कन: घर
~ निश्तर ख़ानक़ाही
Jan 28, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
हिन्दी सुभाषित मे 'चरैवेति - चरैवेति ' यानि की चलते रहो, चलते रहो काफी मशहूर है, निश्तर जी के पहले शेर को पढ़ कर इसकी याद आ गई।
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