था रवानी से ही कायम उसकी हस्ती का सुबूत
गर ठहर जाता तो फिर दरिया कहाँ होने को था
खुद को जो सूरज बताता फिर रहा था रात को
दिन में उस जुगनू का अब चेहरा धुआं होने को था
जाने क्यूँ पिंजरे की छत को आसमां कहने लगा
वो परिंदा जिसका सारा आसमां होने को था
~ अखिलेश तिवारी
Jan 31, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
गर ठहर जाता तो फिर दरिया कहाँ होने को था
खुद को जो सूरज बताता फिर रहा था रात को
दिन में उस जुगनू का अब चेहरा धुआं होने को था
जाने क्यूँ पिंजरे की छत को आसमां कहने लगा
वो परिंदा जिसका सारा आसमां होने को था
~ अखिलेश तिवारी
Jan 31, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment