
मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारों
के मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों
वो बे-खयाल मुसाफ़िर मैं रास्ता यारों
कहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारों
मेरे कलम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी
के अपने बारे मैं ना कुछ भी लिख सका यारों
तमाम शहर ही जिसकी तलाश में ग़म था
मैं उसके घर का पता किस से पूछता यारों
~ वसीम बरेलवी
Apr 8, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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