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Sunday, April 5, 2015

मिली हवाओं में उड़ने की



मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारों
के मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों

वो बे-खयाल मुसाफ़िर मैं रास्ता यारों
कहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारों

मेरे कलम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी
के अपने बारे मैं ना कुछ भी लिख सका यारों

तमाम शहर ही जिसकी तलाश में ग़म था
मैं उसके घर का पता किस से पूछता यारों 


~ वसीम बरेलवी 

   Apr 8, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

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